जीवो से हमारे जीवन का नाता

एक वक्त था जब घर घर हुआ करते थे मकान नहीं 
जिंदगी जिंदादिल थी बोझ नहीं।


 घरों में जानवर भी सदस्य हुआ करते थे, तोहार में बच्चे ही नहीं जानवर भी सजाए जाते थे। घर में पायल सिर्फ बेटी, बहू या मां के लिए ही  नहीं होती थी, कुछ घुंघरू जानवरों के लिए भी मंगवाए जाते थे। कुछ हार घर की बहू बेटियों पर  सजते थे, तो कुछ जानवरों को भी पहनाए जाते थे। गेरू के छापे सिर्फ घर की बहू बेटियों के गर्भवती होने पर नहीं लगते थे जानवरों के गर्भ पर भी लगते थे जब ग्रहण लगता था।

 जब कभी भी जानवर थक जाया करते थे तो उनके लिए किसान भी सुस्ता लिया करते थे।  सिर्फ घर के बच्चों को नहीं खिलाया जाता था देशी घी, घर के उन हल जोतने वाले बैलों की जोड़ियों को भी पिलाया जाता था। जब टिटिहरी पक्षी अपने अंडे खेत की जमीन पर दे दी थी तो उतनी जमीन  छोड़ दी जाती थी।

 जब हल जोतने वाला बैलों का जोड़ा बीमार हो जाता था तो उसकी सेवा एक बुजुर्ग की तरीके से की जाती थी। जब घर में दूध देने वाली गाय बूढ़ी हो जाती थी तो उसकी सेवा मां की तरह की जाती थी और आखरी दम तक गोधन मानकर उसकी सेवा करते थे जब उसकी मृत्यु हो जाती थी तो वैसे ही विदाई दी जाती थी जैसे किसी परिवार के बुजुर्ग सदस्य के जाने पर होती है परिवार उतना ही गमगीन होता था जितना एक मनुष्य के जाने पर होता था होता है। 

ऐसे भी दिन थे जब हमारे जीवन में प्रकृति और जीवों का बड़ा महत्व होता था अगर बिटिया की शादी में गोदान ना किया तो विवाह अधूरा होता था जिस को दान दिया जाता था वह उसे अपना सौभाग्य समझ कर स्वीकार करता था विवाह के वक्त पर प्रकृति के हर तत्व की पूजा होती उसका आवाहन होता था।


वह भी दिन थे जब तुलसी का पौधा तुलसी मैया होती थी और पीपल का पेड़ पीपल देवता होते थे क्या हमारे बच्चे कभी इस सभ्यता को जान पाएंगे? जहां पर प्रकृति के पेड़ पौधों को देवी देवता का नाम दिया जाता था  क्योंकि आज ना तो घरों के पास  पीपल का पेड़ है और ना ही घरों में तुलसी है, क्योंकि तुलसी की जगह कैक्टस के पौधों ने ले ली है अजीब जमाना आ गया है फूलों की जगह काटो  ने ले ली।
 

 हम कहते हैं कि हम बहुत प्रोग्रेसिव हो गए हैं कहीं ऐसा तो नहीं है हमने बहुत कुछ खो दिया है और हमको इस का एहसास भी नही। हम आज अपने आप को बहुत शिक्षित कहते हैं और पुराने जमाने को अशिक्षित मान करके हमने उनकी धारणा मानना छोड़ दिया है

हां बहुत शिक्षित हो गए हैं और बहुत प्रोग्रेस कर ली है इसीलिए आज जब अपनी जिंदगी से अपनी प्रोग्रेस से थक जाते हैं तो हम हाउस स्टे लेने किसी जंगल में या किसी पहाड़ी में जाते हैं क्योंकि जीवन आज भी जंगलों और पहाड़ियों में वही पुराना वाला है। वहां कोई नहीं कहता कि यह जो ठंडी हवा है प्रकृति की या जो जानवर आसपास घूम रहे हैं यह शिक्षित वर्ग का हिस्सा नहीं है यह पिछड़ापन है।

ये वही जिंदगी है  जिसे हम आज भूल गए हैं हम अपनी प्रकृति और प्रकृति के जीवो के प्रति कृतज्ञ नहीं रहे। कोशिश करिए प्रकृति की ओर चलिए जीवो की ओर चले और अपनी जिंदगी को एक बेहतर आयाम दीजिए।

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