स्वदेशी कुत्ते बेघर क्यो?

स्वदेशी कुत्ते बेघर क्यो?


हम इंसान का स्वभाव होता है जब हम किसी भी चीज से प्रभावित होते हैं हमें उसकी चाहत होने लगती है चाहे वह कोई वस्तु हो ,जीव हो या फिर किसी व्यक्ति के विचार, क्या हमें इस हद तक वशीभूत हो जाना चाहिए कि सही गलत का फर्क ही ना कर सके ?

 उदाहरण के तौर पर विदेशी पर को ही ले लीजिए विदेश में जाना ,नौकरी करना फिर रहने लगना, विदेशी कपड़ों के प्रति आकर्षण, विदेशियों के साथ फोटो खींचा कर गौरवान्वित महसूस करना इत्यादि।

 हम अपने स्वदेश को त्याग कर  अंधी दौड़ में चले गए हैं  और अब तो इसका प्रभाव एक आदत में बदलने लगी है और यह आदत एक शौक में जिससे किस-किस को पीड़ा हो रही है या हम उनको तकलीफ दे रहे हैं यह हम और आप सोच भी नहीं सकते।

यह बात निकली है जीव की तकलीफ से जिसको पहले ऊंचें दामों पर खरीदा जाता है और फिर  पाल न पाने की स्थिती में असहाय अवस्था में छोड़ दिया जाता है। 

यह किसी एक विदेशी श्वान की कहानी  नहीं है बल्कि भारत के हर शहर में अनगिनत विदेशी श्वानो की कहानी है। प्रश्न के उड़ता है हम क्यों पालते हैं विदेशी श्वानो को ,शान बान के लिए या जब उनकी जरूरत पूरी हो जाए या हम उनकी जरूरत पूरा ना कर पाए घर के बाहर निकाल सकते हैं,  क्योंकि वे शिकायत करने भी नहीं आएंगे ना ही बदला लेने आएंगे I 

स्वनो की दर्दनाक स्थिति खत्म हो सकती है जब हम और आप देसी या भारतीय  स्वान के महत्व को सही मायने में समझेंगे

देसी और विदेशी श्वानो की बात करें तो हमारे भारतीय श्वानो कहीं ज्यादा सहज होते हैं पालने के लिए । वफादारी और प्यार देने की बात आए तो क्या देसी क्या विदेशी श्वान कि उनकी तुलना में कोई भी नहीं है । किंतु कुछ ऐसे  तथ्य हैं जिसमें भारती श्वान पहले पायदान पर आते हैं उसका मुख्य कारण है-

भौगोलिक दिशाएं

देसी श्वान भारत की जलवायु में सहजता से तालमेल बना लेते हैं वहीं विदेशी श्वान यहां की जलवायु में जल्दी बीमार पड़ते हैं जिससे उन पर चिकित्सा का खर्च अधिक आता है । उनके रहने के लिए घर में व्यवस्था करने में ही अधिक खर्च आता है ।

 

सरल खानपान

भारतीय श्वानो के खानपान की आदत भी बहुत सरल होती है वह भोजन को सहजता से पचा लेते हैं वही विदेशी श्वानो के खान पान को लेकर ज्यादा  इंतजाम किए जाते हैं  जो गुणवत्ता में भी उत्तम और मात्रा में भी ज्यादा खाते हैं , यहां पर विदेशी स्वान पर भी अधिक खर्च आता है ।

सरल स्वभाव

 भारतीय श्वानो को भी आप प्रशिक्षण देकर उच्च स्तर का व्यवहार पास सकते हैं वही विदेशी श्वानो में यदि उचित खानपान वातावरण ना मिले तो क्रोधित होकर नुकसान पहुंचा सकते हैं ।

साज सज्जा में कम खर्च

 भारतीय श्वानो के बाल भी छोटे होते हैं जिसमें उनकी साज सज्जा, साफ-सफाई में कोई परेशानी नहीं आती है वही विदेशी श्वानो को लंबे बाल होते हैं क्योंकि वो ठंडे देशों से आते हैं तो उन्हें अधिक देखभाल साफ-सफाई की आवश्यकता होती है ।

रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक

 भारतीय श्वानो की उम्र भी विदेशी श्वानो से अधिक होती है क्योंकि उनमें उनको ज्यादा चिकित्सीय देखभाल की आवश्यकता नहीं पड़ती है,  उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता  अधिक होती है ।

भारतीय श्वानो को प्राथमिकता दें , हम सभी उन्हें अपनाएं और घर दे जिससे उनको आपका हमारा प्यार मिलेगा अच्छे से जिंदगी जिएंगे ।
 

विदेशी श्वानो को जो तकलीफ उठानी पड़ती है वो नहीं होगी  जिसको शायद वो आपकी भाषा में नहीं कह पाते हैं । भारतीय श्वानो को अपनाएं वो किसी से कम नहीं है बल्कि  गुणों में अधिक ही मिलेंगे ।
हम सभी इस वफादार जीव को विलुप्त होने से बचा सकते है।

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